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संभल का ऐतिहासिक महत्व - सिकंदर लोदी का चार साल का डेरा, कल्कि अवतार से संबंध

संभल का इतिहास और उसका धार्मिक-सांस्कृतिक संदर्भ - सिकंदर लोदी का शासन और कल्कि अवतार से संबंध

Image credit india 
संभल का ऐतिहासिक इतिहास बहुत ही दिलचस्प है। दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने यहाँ लगभग चार साल तक डेरा डाला था, जो इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। साथ ही, इसे कल्कि अवतार से भी जोड़ा जाता है, जिससे इस स्थान का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ जाता है।
उत्तर प्रदेश का संभल जिला वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं और ऐतिहासिक स्थलों को लेकर चर्चा में है। हाल ही में यहां मंदिर, मस्जिद और बावड़ी को लेकर घटनाएं सुर्खियों में रही हैं। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में बिजली चोरी को लेकर चेकिंग अभियान के दौरान एक मंदिर की खोज हुई, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति और शिवलिंग पाया गया। इसके अलावा, संभल के पास चंदौसी में 150 साल पुरानी ऐतिहासिक बावड़ी की खोज हुई, जिसकी खुदाई अब शुरू हो गई है। इसके साथ ही मस्जिद के सर्वे को लेकर भी राजनीतिक हलकों में चर्चा हुई।

हालांकि, इन घटनाओं के बाद संभल में मंदिर, मस्जिद और बावड़ी के मिलने से यह मुद्दा और ज्यादा चर्चा में आया है, लेकिन असल में संभल का इतिहास हमेशा से धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक विविधताओं की ओर इशारा करता रहा है। संभल का इतिहास विभिन्न धार्मिक दृष्टिकोणों से गहरे जुड़े हुए हैं, और यह जिला अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के कारण हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है।

संभल का इतिहास धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ा हुआ है, और इन नई घटनाओं ने केवल इसके इतिहास को और भी रोचक और गहरे अर्थों में जोड़ दिया है।

सिकंदर लोदी का डेरा और संभल का ऐतिहासिक महत्व

सिकंदर लोदी ने चार साल तक संभल में अपना डेरा डाला था, और इस शहर का ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। 28 सितंबर 2011 को इसे भीमनगर के नाम से स्थापित किया गया था, लेकिन 23 जुलाई 2012 को इसका नाम बदलकर संभल रख दिया गया। संभल के बारे में मान्यता है कि यह चारों युगों में अस्तित्व में रहा है—सतयुग में सत्यव्रत, त्रेता में महादगिरि, द्वापर में पिंगल और कलयुग में इसे संभल कहा गया। दिल्ली सल्तनत काल से लेकर मुगलकाल तक यह स्थान उत्तरी भारत का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र रहा है।

बहलोल लोदी और सिकंदर लोदी का संबंध संभल से

दिल्ली सल्तनत के संस्थापक बहलोल लोदी ने अपने शासनकाल के दौरान संभल को एक महत्वपूर्ण जागीर के रूप में अपने पुत्र सिकंदर लोदी को सौंपा। जब सिकंदर लोदी ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा किया, तो भी उन्होंने अगले चार साल तक संभल को अपना निवास स्थान बनाए रखा। यही वह स्थान था जहां उन्होंने एक महत्वपूर्ण धर्मसभा का आयोजन किया, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।

संभल की प्रशासनिक व्यवस्था और मुगलों के शासन काल में उसका महत्व
शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया और 1552 ईस्वी में संभल की प्रशासनिक जिम्मेदारी मित्रसेन को सौंप दी। मित्रसेन ने संभल का गवर्नर बनकर वहां की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया। अकबर के शासन काल में भी संभल दिल्ली की सरकार का हिस्सा बना रहा, जिससे इसका महत्व बरकरार रहा।

कल्कि अवतार और संभल का ऐतिहासिक महत्व

संभल का इतिहास कल्कि अवतार और उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं के कारण महत्वपूर्ण है। हिंदू धर्म में विष्णु के दस अवतारों में कल्कि अवतार का विशिष्ट स्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय बढ़ जाएगा, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे। यह माना जाता है कि कल्कि अवतार का जन्म संभल में एक ब्राह्मण परिवार में होगा।
संभल का इतिहास धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्थान कल्कि अवतार से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों को विशेष महत्व दिया गया है। इन अवतारों में कल्कि अवतार वह है, जो भविष्य में इस धरती पर अवतरित होंगे। पुराणों के अनुसार, जब समाज में अधर्म और भ्रष्टाचार का प्रसार होगा, तब भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे और संसार में धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे। कल्कि अवतार का जन्म संभल जिले में एक ब्राह्मण परिवार में होगा, जो इस क्षेत्र का निवासी होगा। यह मान्यता आज भी लोगों के बीच एक गहरी धार्मिक आस्था का कारण है।
संभल के विभिन्न मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर कल्कि अवतार से जुड़ी कई कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं। ये कथाएं यहां के निवासियों और श्रद्धालुओं के बीच पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं, और इनका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इन मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर लोग कल्कि अवतार के आगमन के संकेत और आशीर्वाद की कामना करते हैं।संभल की पुरानी इमारतें, मंदिर जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती हैं। इन संरचनाओं में प्राचीन वास्तुकला की विशेषताएं देखने को मिलती हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती हैं।
संभल का नाम पहले 'शंभल' था, और समय के साथ इसके उच्चारण और लिखावट में बदलाव आया। यह परिवर्तन भाषाई और सांस्कृतिक विकास का परिणाम था। इस परिवर्तन ने संभल के इतिहास और विकास को और भी दिलचस्प बना दिया, और यह बताता है कि इस स्थान ने विभिन्न समयों और संस्कृतियों के प्रभाव को महसूस किया है।

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